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प्रेम वियोग पर कविता: प्रेम विच्छेद के भावों को पिरोकर, वियोग पीड़ा को दर्शाती एक संबंध विच्छेद कविता

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गीत: कब तक मैं मनुहार करूं


प्रेम पंथ पर साथ चले थे,
मन में नव संकल्प पले थे।
साथ उमर भर आशा पाले,
प्रियतम क्यों फिर रूठ गए।
सपन सुनहरे पले नयन में,
जो बनकर के टूट गए।।

जबसे बंधा प्रणय का बंधन,
तन मन मेरा सरस गया।
प्रेम तुम्हारा सावनमय बन,
मेरे अंतर बरस गया।
बढ़े फासले शंकाओं के,
जो किस्मत को लूट गए।।
सपन सुनहरे पले नयन में,
जो बनकर के टूट गए।

शंकाओं के बीज उगे थे,
जबसे मन के ऑंगन में।
गाॅंठें मन की हुई गठीली,
उलझी आपस दामन में।
सुलझाने के किए जतन वो,
पल भी पीछे छूट गए।।
सपन सुनहरे पले नयन में,
जो बनकर के टूट गए।

छलनी हुआ हृदय का कोना,
कड़वापन अंतर भरता।
कब तक मैं मनुहार करूं प्रिय,
पुनः विश्वास नहीं धरता।
इन्तजार के क्षण अनमोले,
कितने पीछे छूट गए।।
सपन सुनहरे पले नयन में,
जो बनकर के टूट गए।

जीवन का मधुरिम वसंत अब,
विरह वेदना हवन बना।
अर्चन प्रेम शिवाला मनका,
तन्हाई का भवन बना।
बढ़े गुबार परस्पर कितने,
आहें बनकर फूट गए।।
सपन सुनहरे पले नयन में,
जो बनकर के टूट गए।।




प्रेम पंथ पर साथ चले थे,
मन में नव संकल्प पले थे।
साथ उमर भर आशा पाले,
प्रियतम क्यों फिर रूठ गए।
सपन सुनहरे पले नयन में,
जो बनकर के टूट गए।।


कवि व गीतकार:
कन्हैयालाल भ्रमर
जयपुर, राजस्थान।
8107732482
***




विषय विशेष


प्रेम की वेदना: कन्हैयालाल भ्रमर के गीत का विश्लेषण

कन्हैयालाल भ्रमर का गीत "कब तक मैं मनुहार करूं" प्रेम की वेदना और विरह की पीड़ा का एक मार्मिक चित्रण है। इस गीत में कवि ने प्रेम के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें प्रेम की शुरुआत, प्रेम की वेदना, और प्रेम की समाप्ति शामिल है।

प्रेम की शुरुआत

गीत की शुरुआत में कवि ने प्रेम की शुरुआत का वर्णन किया है, जिसमें दो प्रेमी साथ चलते हैं और नव संकल्प पाले हैं। प्रेम का यह शुरुआती दौर बहुत ही सुंदर और मनमोहक होता है, जिसमें प्रेमी के मन में नव संकल्प पलते हैं और वे साथ में उम्र भर आशा पाले रहते हैं।

प्रेम की वेदना

लेकिन जैसे ही प्रेम की वेदना शुरू होती है, प्रेमी के मन में शंकाएं और संदेह उत्पन्न होने लगते हैं। प्रेमी के मन में शंकाओं के बीज उगने लगते हैं और वे अपने प्रेमी से दूर होने लगते हैं। प्रेम की वेदना इतनी अधिक होती है कि प्रेमी का हृदय छलनी हो जाता है और कड़वापन अंतर भरता है।

विरह की पीड़ा

गीत के अंतिम भाग में कवि ने विरह की पीड़ा का वर्णन किया है, जिसमें प्रेमी अपने प्रेमी से दूर हो जाता है और तन्हाई का भवन बन जाता है। प्रेमी का जीवन अब विरह वेदना हवन बन जाता है और वे अपने प्रेमी की याद में आहें भरते हैं।




निष्कर्ष

कन्हैयालाल भ्रमर का गीत "कब तक मैं मनुहार करूं" प्रेम की वेदना और विरह की पीड़ा का एक मार्मिक चित्रण है। इस गीत में कवि ने प्रेम के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें प्रेम की शुरुआत, प्रेम की वेदना, और प्रेम की समाप्ति शामिल है। यह गीत प्रेम की वेदना और विरह की पीड़ा को महसूस करने के लिए एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है।