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इश्क़ का खेल
ज़िन्दगी जिससे थी रोशन, वो शमा ही तो नहीं।
जब जुनून-ए-होश आया, कुछ बचा ही तो नहीं।।
आँख उससे क्या मिली, साँसें बढ़ीं शामो-सहर।
बेख़ुदी में ढूंढ़ती नज़रें फिर मिला ही तो नहीं।।
आरज़ू के फूल महके, चाँदनी की गोद में।
पर हवाओं की सियाही, का सिला ही तो नहीं।।
ज़ख़्म के गहरे समंदर में डुबो दीं आहटें।
सिलसिला बातों का उनसे फिर रुका ही तो नहीं।।
हसरतें थीं आईने में अक्स अपना देख लें।
पर मिलन के बाद उससे ये हुआ ही तो नहीं।।
अब सदाएँ गूँजती हैं साथ मेरे दरमियाँ।
जिसको सुनना था मगर उसने सुना ही तो नहीं।।
छो़ड़ दी है दर्द की नग़री 'सुमन' ये सोचकर।
के मुहब्बत में सनम अब कुछ बचा ही तो नहीं।।
कवयित्री:
आँख उससे क्या मिली, साँसें बढ़ीं शामो-सहर।
बेख़ुदी में ढूंढ़ती नज़रें फिर मिला ही तो नहीं।।
आरज़ू के फूल महके, चाँदनी की गोद में।
पर हवाओं की सियाही, का सिला ही तो नहीं।।
ज़ख़्म के गहरे समंदर में डुबो दीं आहटें।
सिलसिला बातों का उनसे फिर रुका ही तो नहीं।।
हसरतें थीं आईने में अक्स अपना देख लें।
पर मिलन के बाद उससे ये हुआ ही तो नहीं।।
अब सदाएँ गूँजती हैं साथ मेरे दरमियाँ।
जिसको सुनना था मगर उसने सुना ही तो नहीं।।
छो़ड़ दी है दर्द की नग़री 'सुमन' ये सोचकर।
के मुहब्बत में सनम अब कुछ बचा ही तो नहीं।।
कवयित्री:
सुमंगला सुमन
मुंबई, महाराष्ट्र।
***
विषय विशेष:
इस ग़ज़ल का मुख्य विषय प्यार और विरह है। कवि ने अपने प्यार की भावनाओं और विरह की पीड़ा को बहुत ही सुंदर और दर्द भरे तरीके से व्यक्त किया है।
ग़ज़ल में निम्नलिखित विषयों को छुआ गया है:
1. प्यार की अनुपस्थिति:
कवि ने अपने प्यार की अनुपस्थिति को महसूस किया है और इसके दर्द को व्यक्त किया है।
2. विरह की पीड़ा:
कवि ने विरह की पीड़ा को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है।
3. यादों की दर्दनाकता:
कवि ने अपने प्यार की यादों को दर्दनाक बताया है।
4. प्यार की बेबसी:
कवि ने अपने प्यार की बेबसी को व्यक्त किया है और बताया है कि अब कुछ नहीं बचा है।
काव्य विश्लेषण:
यह एक बहुत ही भावपूर्ण और दर्द भरी ग़ज़ल है, जिसमें प्यार और विरह की भावनाएँ बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त की गई हैं। कवि ने अपने दिल की गहराइयों से निकली हुई बातें बहुत ही प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत की हैं।
ग़ज़ल के कुछ प्रमुख अंश हैं:
"ज़िन्दगी जिससे थी रोशन, वो शमा ही तो नहीं" - यह पंक्ति बताती है कि जिस व्यक्ति से जीवन में रोशनी आती थी, वह अब नहीं है।
"आँख उससे क्या मिली, साँसें बढ़ीं शामो-सहर" - यह पंक्ति बताती है कि जब आँखें मिलीं, तो साँसें तेज हो गईं।
"हसरतें थीं आईने में अक्स अपना देख लें" - यह पंक्ति बताती है कि कवि अपने प्रिय के साथ अपने आप को देखना चाहते थे।
ग़ज़ल की भाषा और शैली बहुत ही सुंदर और प्रभावशाली है। कवि ने अपने दर्द और भावनाओं को बहुत ही अच्छी तरह से व्यक्त किया है।
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