दौर: अपना बेटा
आया है ये वक्त कैसा
रक्त नहीं रक्त जैसा।
बेटा आज बाप को ही
अर्थ समझाता है।
चपर-चपर बोले
सुनता ना हौले-हौले।
जननी के सामने ना
सर को झुकाता है।
मौके की फ़िराक़ में है
सपनों की साख में है।
तिनका-सा ज्ञान लेके
सीने को फूलाता है।
धरती पे फैली बाहें
आसमान पे निगाहें।
खुद का ही भार लेके
उड़ नहीं पाता है।।
युवा कवि:
महेश कुमार हरियाणवी
9015916317
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हरियाणवी कविता
(दौर: हरियाणवी कविता)
आया सै यो वक्त किस्या
रक्त कोन्या रक्त जिस्या
बेटा इब बाप नै ही
घूर के दिखावै सै।
चपर चपर बोल्लै
उझल उझल डोलै
सामणै ना मां के वो
सिर न झुकावै सै।
मौके की फ़िराक़ में सै
इसी ताक झांक में सै
तनिक सा ज्ञान ले कै
फूल्या ना समावै सै।
धरा पे फैलाइ बाहें
धन पे टिकी निगाहें।
उड़ने को मन चाहे
उड़ नहीं पावै सै।।
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विषय विशेष
यह कविता युवा कवि महेश कुमार हरियाणवी द्वारा लिखी गई है, जिसमें उन्होंने वर्तमान समय और युवाओं की स्थिति का वर्णन किया है।
कविता में कई गहरे अर्थ और संदेश हैं:
1. समय का बदलाव:
कविता में कहा गया है कि समय बदल गया है, और अब बेटे अपने ही पिता के भावों को नहीं समझ पाते हैं।
2. अहंकार और घमंड:
कवि ने युवाओं के अहंकार और घमंड को दर्शाया है, जो अपने ज्ञान को लेकर फूल जाते हैं।
3. आदर और सम्मान:
कविता में जननी के सामने सिर न झुकाने का उल्लेख है, जो आदर और सम्मान की कमी को दर्शाता है।
4. आकांक्षाएं और सीमाएं:
कवि ने युवाओं की आकांक्षाओं और सीमाओं का वर्णन किया है, जो आसमान को छूना चाहते हैं लेकिन अपने ही भार को नहीं उठा पाते।
यह कविता वर्तमान समय की चुनौतियों और युवाओं की स्थिति पर एक गहरा प्रतिबिंब है।
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काव्य विश्लेषण
कविता का मुख्य संदेश यह है कि वर्तमान समय में युवाओं को अपने आदर, सम्मान, और विनम्रता को बनाए रखने की आवश्यकता है। उन्हें अपने ज्ञान और क्षमता का सही उपयोग करना चाहिए और अपने अनुभवों से सीखना चाहिए। कविता हमें अपने जीवन में संतुलन और विनम्रता को बनाए रखने के महत्व को समझने के लिए प्रेरित करती है।
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