दलबीर फ़ूल | हरियाणवी कवि | रेडियो कवि | हरियाणवी लोक कवि | रेवाड़ी का कवि | Kavi Dalbeer Phool | काव्यपृष्ठ
कोय कोयले की कार करै
कितै काजू कितै किशमिश
कुंजर की करी कांया कोड
क्यों कपट करया कसूता
कांया के काट्ट़ो कसाले
👉कविताएँ: 4
👉परिचय: लोकचर्चित रेडियो कवि दलबीर फूल
👉फ़ोटो: उपलब्ध हैं
👉पता: रेवाड़ी, हरियाणा
👉संपर्क: *******642
कलाकारी करतार की
कारीगर करतार करी
किसी-किसी कलाकारी।
कितै केशर कुंज कहीं
कितै केशर कुंज कहीं
कंकर की करी क्यारी।
कोय कोयले की कार करै
क्यूं कर को करता काल़ा।
कोय कनक कट्ठ़ा करकै
कोय कनक कट्ठ़ा करकै
करता कांया का कुढाल़ा।
कोय करता कार कतल की
कोय कैंची का कलाधारी।
कितै केशर कुंज कहीं
कितै केशर कुंज कहीं
कंकर की करी क्यारी।।
कितै काजू कितै किशमिश
कितै कलियों की कतराई।
कितै कूकै काल़ी कोयल
कितै कूकै काल़ी कोयल
कितै कागा करै कुटलाई।।
कुंजर की करी कांया कोड
करी कोड किशारी..।
कितै केशर कुंज कहीं
कितै केशर कुंज कहीं
कंकर की करी क्यारी।।
कोल करार करवा करवाकै
कोल करार करवा करवाकै
काटता करड़ाई...
कुबद करवा करवा कै क्यूं
कुबद करवा करवा कै क्यूं
कहलवाता कुदाई।
क्यों कपट करया कसूता
करदी कपट कटारी।
कितै केशर कुंज कहीं
कितै केशर कुंज कहीं
कंकर की करी क्यारी।।
काव्य कृत कुम्भ की
काव्य कृत कुम्भ की
कृपा करी कन्हाई।
क-क-को कट्ठ़ा कर
क-क-को कट्ठ़ा कर
करी कविताई..।
कांया के काट्ट़ो कसाले
काल़े केशव कंशारी।
कितै केशर कुंज कहीं
कितै केशर कुंज कहीं
कंकर की करी क्यारी।।
लोक कवि व रेड़ियो सिंगर
दलबीर 'फूल'
गांव: लिसान, रेवाड़ी हरियाणा।
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विषय सारांश
यह कविता दलबीर 'फूल' द्वारा लिखी गई है, जो एक प्रसिद्ध लोक कवि और रेडियो सिंगर हैं। इस कविता में, कवि ने विभिन्न कारीगरों और उनकी कलाकारी का वर्णन किया है, जैसे कि केशर कुंज, कंकर की क्यारी, कोयले की कार, कनक कट्ठा, और कविताई। कविता में कवि ने अनुप्रास का उपयोग करके एक सुंदर और आकर्षक चित्र प्रस्तुत किया है।
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बेईमान: पहलगाँव में आतंकी साजिश
पाकिस्तान बेईमान आणकै
करग्या घणी मनमानी।
पहलगाम मैं धरम पूछकै
मार गया सैलानी।।
अमन चमन को दफन कर
कफन उढाग्या भतेरे
चौखा- मौका देख वहांपै
धोखा दे डाल्या डेरा
केस भेष बदल कै अपणे
युगल निहत्थे घेरे
वा केसर क्यारी चिंघाड़ी
निरदोस मारकै गेरे
कुछ लेकै आये थे फेरे
किमैं सेना के सैनानी
पहलगाम मैं धरम पूछकै
मार गया सैलानी.....।।
मार अट्ठ़ाईस मन के म्हां
सहम होरहया राज्जी
अट्ठ़ाईस के बदले अट्ठ़ाईसों
मारैंगे सुणले पाज्जी
सरजिकल सटराईक की भी
जित्त़ी हमनै बाज्जी
चौड़ै - धाड़ै दीख रही सै
थारै कजा सीस पै गाज्जी
छुपज्यां गे सब मुल्ला काज्जी
जिब गरजै मात भवानी
पहलगाम मैं धरम पूछकै
मार गया सैलानी.........।।
पहल्ये पूछ्य़ा धरम बेसरम
फेर हथियार चलाया
धर गरदन बंदूक और तनै
कलमा सुणना चाहया
हिन्दू मुस्लिम जाचण खात्यर
लत्त़ा तलक तरवाया
बणया दरिंदा अन्धा धन्धा
गन्दा करम कमाया
तनै कौम कै दाग लगाया
तू नही किसै तै छांनी
पहलगाम मैं धरम पूछकै
मार गया सैलानी.........।।
सुत्या सेर तनै फेर जगादिया
ईब अपणी खैर मनाणा
तनै घर मैं घुसकै मारागें
मत मन मैं इतराणा
गद्द़ार त्यार हथियार उठा
आहमी - साहमी आणा
आतंकवाद कै साथ - साथ
तेरा बी नाम मिटाणा
दलबीर 'फूल' कहै गाकै गाणा
हम वीर हैं हिन्दूस्तानी
पहलगाम मैं धरम पूछकै
मार गया सैलानी............।।
लोक कवि व रेड़ियो सिंगर
दलबीर 'फूल'
गांव: लिसान, रेवाड़ी हरियाणा।
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विषय सारांश
यह कविता पहलगाम में हुई एक घटना पर आधारित है, जिसमें कुछ सैलानियों को धर्म पूछकर मारा गया था। कवि दलबीर 'फूल' ने इस घटना की निंदा की है और आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाई है। कविता में कवि ने आतंकवादियों की करतूतों को उजागर किया है और उन्हें गद्दार बताया है। कविता का मुख्य संदेश यह है कि आतंकवाद और धर्म के नाम पर हिंसा की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
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2 मनाओ संवत्सर त्यौहार
सर्व जगत का संकट हारी, करे जो बेडा़ पार
मनाओ संवत्सर त्यौहार।
पलक पाँवड़ा बिछाके धरती
नतमस्तक हो सुस्वागत करती
नये अंन का भोग लगाके, करे तेरा सत्कार
मनाओ संवत्सर त्यौहार ।
वृक्षों पर नई कोंपल आये
साहूकार नई बही बनाये
अंग अंग सबका मुश्काये, नयाहो रक्त संचार
मनाओ संवत्सर त्यौहार।
नव दुर्गा की शुरु हो भक्ति
उपवास कराये देकर शक्ति
सबको एक ही रंगमें रंगती,ऐसी चले ब्यार
मनाओ संवत्सर त्यौहार।
मन की बदलो सभी उदासी
संवत मनाएं हम ये बियासी
सुनो मेरे भारतवासी, यही धरम प्रचार
मनाओ संवत्सर त्यौहार ।
लोक कवि व रेड़ियो सिंगर
दलबीर 'फूल'
गांव: लिसान, रेवाड़ी हरियाणा।
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विषय सारांश
यह कविता नव वर्ष या संवत्सर के अवसर पर लिखी गई है, जिसमें कवि दलबीर 'फूल' ने प्रकृति की नव चेतना और नव जीवन की भावना को व्यक्त किया है। कविता में कवि ने संवत्सर को एक नए जीवन की शुरुआत के रूप में देखा है, जिसमें प्रकृति नव जीवन से भर उठती है और लोगों के मन में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार होता है।
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3 मातृदिवस पर रागनी
एक बार माँ कहणे तैं-ही,
हार उतरज्यां सारी।
करकै दर्शन मनहो परशन,
हटज्यां सभी बिमारी।
नो मिहने तक पेट माण्ड कै,
म्हारा बोझा ढोवै
कुल की बेल बधावण खात्यर
नूर निराला़ खोवै
बेट्ट़ा-बेट्ट़ी जामण नै माँ,
ज्यान जंग मैं झोवै
सरद-गरम का मरम हो जाप्पा,
मलमूत्र भी धोवै
नहीं पीठ फेर कै सोवै,
हो, ओलाद ज्यानतै प्यारी...
करकै दर्शन मन हो परशन,
हटज्यां सभी बिमारी।।
औलाद की खात्य़र रुप धारले,
देखो माता काळी का
एक मिन्ट न ढिल्ला छोड़ै
चोखा काम रुखाळी का
पाल़पोश बलवान बणादे,
अपणा भोजन थाळी का
दशों दिशा मैं करै चादणा
बणकै दीप दिवाळी का
रूप बणा कै माळी का,
सदा देख-रेख करै म्हारी...
करकै दर्शन मन हो परशन,
हटज्यां सभी बिमारी।।
पढा लिखा संस्कार सिखा,
माँ पूरा फरज पुगाती
चढ़ घोड़ी पै ब्याहवण जाता,
माता दूद्ध़ी प्याती
लाज राखिये दूध मेरे की,
माता पीठ थप-थपाती
ब्याह कै ल्यावै बेटा बहू नै
हो माँ की चोड़ी छाती
जीवै जिब तक प्यार निभाती
माँ ममता की झारी...
करकै दर्शन मन हो परशन,
हटज्यां सभी बिमारी।।
अगम-निगम पुराण हारग्ये,
माँ का अर्थ बताणे मैं
गावणिये सब रहे अधूरे,
माँ की महिमा गाणे मैं
होज्यां वारे-न्यारे म्हारे,
माँ को शीश झुकाणे मैं
दलबीर तेरी कोशिश थोड़ीसी
माँ के भजन बणाणे मैं
माँ का करज चुकाणे मैं,
खुद हार गया न्याकारी...
करकै दर्शन मनहो परशन,
हटज्यां सभी बिमारी।।
लोक कवि व रेड़ियो सिंगर
दलबीर 'फूल'
गांव: लिसान, रेवाड़ी हरियाणा।
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