मातृदिवस पर कविता
एक बार माँ कहणे तैं-ही,
हार उतरज्यां सारी।
करकै दर्शन मनहो परशन,
हटज्यां सभी बिमारी।
नो मिहने तक पेट माण्ड कै,
म्हारा बोझा ढोवै
कुल की बेल बधावण खात्यर
नूर निराला़ खोवै
बेट्ट़ा-बेट्ट़ी जामण नै माँ,
ज्यान जंग मैं झोवै
सरद-गरम का मरम हो जाप्पा,
मलमूत्र भी धोवै
नहीं पीठ फेर कै सोवै,
हो, ओलाद ज्यानतै प्यारी...
करकै दर्शन मन हो परशन,
हटज्यां सभी बिमारी।।
औलाद की खात्य़र रुप धारले,
देखो माता काळी का
एक मिन्ट न ढिल्ला छोड़ै
चोखा काम रुखाळी का
पाल़पोश बलवान बणादे,
अपणा भोजन थाळी का
दशों दिशा मैं करै चादणा
बणकै दीप दिवाळी का
रूप बणा कै माळी का,
सदा देख-रेख करै म्हारी...
करकै दर्शन मन हो परशन,
हटज्यां सभी बिमारी।।
पढा लिखा संस्कार सिखा,
माँ पूरा फरज पुगाती
चढ़ घोड़ी पै ब्याहवण जाता,
माता दूद्ध़ी प्याती
लाज राखिये दूध मेरे की,
माता पीठ थप-थपाती
ब्याह कै ल्यावै बेटा बहू नै
हो माँ की चोड़ी छाती
जीवै जिब तक प्यार निभाती
माँ ममता की झारी...
करकै दर्शन मन हो परशन,
हटज्यां सभी बिमारी।।
अगम-निगम पुराण हारग्ये,
माँ का अर्थ बताणे मैं
गावणिये सब रहे अधूरे,
माँ की महिमा गाणे मैं
होज्यां वारे-न्यारे म्हारे,
माँ को शीश झुकाणे मैं
दलबीर तेरी कोशिश थोड़ी
माँ के भजन बणाणे मैं
माँ का करज चुकाणे मैं,
खुद हार गया न्याकारी...
करकै दर्शन मनहो परशन,
हटज्यां सभी बिमारी।।
लोक कवि व रेड़ियो सिंगर
दलबीर 'फूल'
गांव: लिसान, रेवाड़ी हरियाणा।
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विषय विशेष:
यह कविता माँ के प्रेम और त्याग को व्यक्त करती है, जिसमें कवि दलबीर 'फूल' ने माँ की महिमा और उसके अनगिनत योगदानों को उजागर किया है। कविता में कवि ने माँ के निस्वार्थ प्रेम, उसकी ममता और उसके द्वारा दिए गए संस्कारों को व्यक्त किया है।
कविता के मुख्य बिंदु हैं:
1. माँ का त्याग और प्रेम
2. माँ के द्वारा दिए गए संस्कार और शिक्षा
3. माँ की महिमा और उसके अनगिनत योगदान
4. कवि की अपनी माँ के प्रति श्रद्धा और सम्मान
कविता की शैली में हरियाणवी भाषा का उपयोग किया गया है, जो कविता को एक अनोखा और विशिष्ट स्वाद देता है।
माँ का आँचल
थाम के दुःख का दामन,
जो दुनिया दिखलाती हैं।
सच, माँ तो केवल माँ है,
हर दुखड़े हर जाती हैं॥
जिस आँचल के दूध तले,
इस जीवन की आस पले।
ला, गोद धरी थी दुनिया,
सपने थें आकाश खिले।
दी सीख भली आदत की,
जो हरदम जितवाती है।
सच, माँ तो केवल माँ है,
हर दुखड़े हर जाती हैं॥
जीवन से जिसकी यारी,
कितनों की ज़िम्मेदारी।
संस्कारों को पाल रही,
बन लोक-लाज की नारी।
भले करे हम ग़लती पर,
वो पल-पल अपनाती हैं।
सच, माँ तो केवल माँ है,
हर दुखड़े हर जाती हैं॥
बढ़ते क़दम देख के माँ,
मंद-मंद मुस्काती हैं।
गिर न जाए लाल मेरा,
कह, थोड़ा सकुचाती हैं।
शिकवों का तो नाम नहीं,
वो ममता बरसाती हैं।
सच, माँ तो केवल माँ है,
हर दुखड़े हर जाती हैं॥
मंच कवि:
महेश कुमार हरियाणवी
झूक, महेंद्रगढ़, हरियाणा।
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माँ की छवि
‘माँ’की छवि मेरे मन में
यादों के फूल बरसाती है
जितना याद करूँ माँ को
उतनी यादें बढ़ जाती हैं
याद बहुत ही आती है
माँ याद बहुत ही आती है।
सर्दी,गर्मी या बरसात
चाहे दिन चाहे हो रात
रहती थी पल-पल वो साथ
आज अंधेरी रातों में
उसकी याद सताती है
याद बहुत ही आती है
माँ याद बहुत ही आती है।
खाना खाया करते संग
प्यार लुटाया करते संग
याद कर उन घड़ियों को
कसक बहुत बढ़ जाती है
याद बहुत ही आती है
माँ याद बहुत ही आती है।
जब-जब मन हुआ मेरा उदास
पाया हरदम माँ को पास
उन लमहों को याद करूँ
तो याद बहुत बढ़ जाती है
याद बहुत ही आती है
वो याद बहुत ही आती है।
अद्भुत था वो प्यार दुलार
चौखट पर करना इंतज़ार
उसकी पथराई आँखे
बिन कहे बहुत कह जाती हैं
माँ याद बहुत तू आती है
‘माँ’ याद बहुत तू आती है।।
वरिष्ठ कवि:
राजपाल यादव
गुरुग्राम, हरियाणा।
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विषय विशेष
यह कविता माँ के प्रति प्रेम और श्रद्धा को व्यक्त करती है, जिसमें कवि राजपाल यादव ने माँ की यादों को अपने मन में बसा लिया है। कविता में कवि ने माँ के साथ बिताए गए पलों को याद किया है और उनकी अनुपस्थिति में महसूस होने वाली कमी को व्यक्त किया है।
कविता के मुख्य बिंदु हैं:
1. माँ की यादों का महत्व
2. माँ के साथ बिताए गए पलों की याद
3. माँ की अनुपस्थिति में महसूस होने वाली कमी
4. कवि की अपनी माँ के प्रति श्रद्धा और प्रेम
कविता की शैली में एक मार्मिक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति है, जो पाठकों को माँ के प्रति अपने प्रेम और श्रद्धा को महसूस करने के लिए प्रेरित करती है।
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